Describe the protective provision, s for women under chapter on directive principles of state policy, राज्य के नीति निर्देशक सिद्वान्तों के अध्याय में महिलाओं हेतु संरक्षणात्मक प्रावधानों का वर्णन कीजिए

 राज्य की नीति के निदेशक तत्वों में महिलाओं के लिये उपबन्ध :- संविधान के भाग 4 में राज्य की नीति के निदेशक तत्वों में महिलाओं एवं बालको के लिये कई विशेष व्यवस्थायें की गयी हैं, यथा-


(1) राज्य अपनी नीति का इस प्रकार संचालन करेगा कि पुरूष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो । ( अनुच्छेद 39 (क))

अनुच्छेद 39 में यह उपवन्ध किया गया है कि राज्य विशेषकर निम्न की प्राप्ति हेतु अपनी निदेशित करेगा।

(i) यह कि कर्मकारों, पुरूषों तथा स्त्रियों और नाजुक उम्र के बालकों के स्वास्थ्य तथा बल का दुरूपयोग न हो, तथा नागरिक अपनी आयु अथवा बल के लिये अनुपयुक्त व्यवसायों में प्रवेश करने की आर्थिक आवश्यकता से विवश न हो।

(ii) यह कि बालकों को स्वस्थ ढंग से एवं आजादी तथा मर्यादित स्थितियों में विकसित होने के अवसर एंव सुविधाएँ दी जायें तथा बाल्यावस्था तथा युवावस्था की नैतिक एवं भौतिक परित्याग से रक्षा की जाये।

(2) पुरूषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिये समान वेतन हो (अनुच्छेद 39 (घ))।

समान कार्य के लिये समान वेतन :-


इसी सन्दर्भ में महिलाओं के लिये एक और कल्याणकारी व्यवस्था 'समान कार्य के लिये समान वेतन' की है। जब से नारी स्वातन्त्रय की लहर चली है तब से यह धारणा दिन-प्रतिदिन प्रबल होती जा रही है। अब यह प्रायः सुनिश्चित-सा हो गया है कि समान कार्य के लिये महिलाओं को पुरूषों के समान वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता है।


• इस सम्बन्ध में उत्तराखण्ड महिला कल्याण परिषद् बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश का एक अच्छा मामला है। इसमें समान कार्य के लिये पुरूष एवं महिला शिक्षकों के वेतन में भिन्नता को चुनौती दी गयी थी। समान पद पर समान कार्य करने वाले पुरूष शिक्षकों को महिला शिक्षकों से अधिक वेतन दिया जाता था। उच्चतम न्यायालय ने इसे असंवैधानिक मानते हुये महिला शिक्षकों को भी पुरुष शिक्षकों के समान वेतन दिये जाने के आदेश दिये।

नेहरू युवा केन्द्र संगठन बनाम राजेश मोहन शुक्ला के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि जहाँ समान कार्य हो, वहाँ सीधी भर्ती व प्रतिनियुक्ति पर आने वाले कर्मचारियों के वेतन-भत्ते में विभेद नहीं किया जाना चाहिये।



(3) पुरूष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों। (अनुच्छेद 39 ड) ।

(4) बालकों को स्वतन्त्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधायें दी जायें और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाये। (अनुच्छेद 39 च)

(5) राज्य काम की न्यायासंगत और मनोवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिये और प्रसूति सहायता के लिये उपबन्ध करेगा । (अनुच्छेद 42 )

(6) राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा। (अनुच्छेद 44)

सरला मुद्गल बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार से यह अनुशंसा की गयी कि वह संविधान के अनुच्छेद 44 पर नया दृष्टिकोण अपनाये जिसमें सभी नागरिकों के लिये एक 'समान सिविल संहिता' बनाने का निर्देश दिया गया है।

(7) राज्य बालकों को चौदह वर्ष को आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिये उपबन्ध करने का प्रयास करेगा। (अनुच्छेद 45)

इस प्रकार उपरोक्त नीति निदेशक तत्वों में महिलाओं एवं बालकों के कल्याण के लिये कई अभिनव व्यवस्थायें की गयी हैं। न्यायालयों ने भी समय-समय पर इन नीति निदेशक तत्वों की क्रियान्वित के सार्थक प्रयास किये हैं ।



पी चेरीयाकया बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया के मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि "शिक्षा का अधिकार में प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता के अधिकार में सन्निहित है। राज्य का यह कर्तव्य है कि वह इसी परिप्रेक्ष्य में शिक्षा का समुचित प्रबन्ध करे।"

यूनीकृष्णन बनाम स्टेट ऑफ आन्ध्र प्रदेश- के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यहाँ तक अभिनिर्धािरित किया गया है कि चौदह वर्ष के बालकों को निःशुल्क शिक्षा देना राज्य का संवैधानिक दायित्व है ।

उत्तराखण्ड महिला कल्याण परिषद् बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा है कि समान पद पर समान कार्य करने वाले पुरुष शिक्षकों एवं महिला शिक्षकों के वेतन में विभेद नहीं किया जा सकता है ।


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