सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने रिटायरमेंट के बाद क्या बोले

“मैं सेवानिवृत्त के बाद कोई पद स्वीकार नही करूँगा लेकिन शायद कानून के क्षेत्र में कुछ करूँगा।” या शब्द है देश के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना में जो उन्होंने विदाई के दौरान पत्रकारों से कहा, "उन्होंने ने कहा वे रिटायरमेंट के बाद सरकार की ओर से दिया जाने वाला कोई आधिकारिक पद नही लेंगे" जस्टिस संजीव खन्ना ने मंगलवार13 मई को रिटायर हो गए है। बतौर न्याधीश मंगलवार को उनका अंतिम कार्य दिवस रहा। इस मौके पे उन्होने पुष्टि की कि रिटायरमेंट के बाद कोई आधिकारिक पड़ ग्रहण नही करेंगे जब सुप्रीम कोर्ट मे पत्रकारों से बात कर रहे थे तो उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कोई पद ना लेने कज बात कही। जस्टिस खन्ना के इस बयान से स्पष्ट हो गया कि वह किसी अयोग का अध्यक्ष पद या फिर कोई संवैधानिक पद को स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन कानून के क्षेत्र में काम करते रहेंगे हालांकि इस क्षेत्र में उनकी अगली भूमिका क्या होगी और कैसे होगी इस पर उन्होंने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है। उन्होंने फिलहाल इतना संकेत दिया है कि वह ना तो घर बैठेंगे और न ही किसी सरकारी ऑड पर बैठेंगे बल्कि अपनी लम्बी कानूनी यात्रा में कानून के क्षेत्र में कोई भूमिका तय करेंगे।
उनके फेयरवेल सेरेमनी के दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एशोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल, अटार्नी जनरल और वेंकट रमण, सालिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत तमाम वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने speech दी और उनके साथ बिताए गए दिनो को याद किया। बताया जा रहा है उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस यशवंत वर्मा केस पर भी टिप्पणी की थी। बार एंड बेंच के मुताबिक उन्होंने कहा "न्यायिक सोच निर्णायक और निर्णायात्मक होनी चाहिए हम प्लस और माइनस देखते हैं और फिर तर्क संगत तरीके से मुद्दे पर निर्णय लेते हैं जब हम ऐसा करते हैं तो फिर भविष्य आपको बताता है कि आपने जो किया वह सही है या गलत...... कैसा रहा जस्टिस खन्ना के कानूनी सफर? जस्टिस संजीव खन्ना जून 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज नियुक्त किये गए। ऑफ फरवरी 2006 में वे स्थाई जज बन गए। इस दौरान उन्होने दिल्ली न्यायिक अकादमी दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र और जिला न्यायालय मध्यस्थता केंद्र के अध्यक्ष प्रभारी जज के रूप में अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। 18 जनवरी 2019 को जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया। उस समय उनकी नियुक्ति कुछ विवादों में रही क्योंकि उन्होंने किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य हक किया था।लेकिन उनकी वरिष्ठता एवं योग्यता के आधार पर यह निर्णय लिया गया। 11 नवंबर 2024 को जस्टिस संजीव खन्ना ने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। जस्टिस डी0 वाई0 चंद्रचूड़ के उत्तराधिकारी के रूप में शपथ ली। उनका कार्यकाल 13 मई 2025 तक रहा जो केवल य महीने का था। क्योंकि भरतीय संविधान के तहत CJI का कार्यकाल 65 वर्ष कज आयु तक का ही होता हैं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने तमाम ऐतिहासिक फैसले दिए जिसमे इलेक्ट्रोरल बॉन्ड मामला, अनुच्छेद 370, विल्किस बानो केस, प्लेसेज ऑफ वॉरशिप एक्ट, विपिपैड वेरिफिकेशन जैसे तमाम मामले हैं।
14 मई 1960 को जन्मे संजीव खन्ना एक समृद्ध और कानूनी विरासत वाले परिवार से आते हैं उनके पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं जबकि उनकी माँ सरोज खन्ना लेडी श्रीराम कॉलेज में लेक्चरर थी। वह सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हंसराज खन्ना के भतीजे हैं। जिन्होंने केशवानंद भारती केस 1973 में मूल संरचना सिद्धांत का प्रतिपादन किया। और आपातकाल के दौरान ADM जबलपुर बन्दी प्रत्यक्षीकरण मामले 1976 में एक ऐतिहासिक असहमति व्यक्त की थी। जिसे हम हेवीयस कार्पस मामले के नाम से जानते हैं। इस न्यायिक स्वतंत्रता के बदले H.R खन्ना को जनवरी 1977 में भारी कीमत चुकानी पड़ी थीं। कहा जाता हैं कि तब उन्हें इसी वजह से CJI नही बनने दिया गया था। अपने परिवार के सदस्यों की तरह बतौर न्यायाधीश उनका करियर भी बेहतरीन रहा।

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