सुप्रीम कोर्ट वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर स्टे की मांग वाली याचिकाओं पर आज अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सुप्रीम कोर्ट वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर स्टे की मांग वाली याचिकाओं पर आज अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
3 दिनों के लम्बी सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस ए०जी० मसीह और जस्टिस बी० आर० गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने गुरुवार को सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा जो कुछ दिनों में सामने आयेगा।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अपनी दलील रखी। उन्होंने कहा जैसे-ही किसी सम्पन्ति की वक्फ जाँच शुरू होती है तब तक के लिए उसका वक्फ दर्जा खत्म हो जाता है। 200 साल पुरानी कब्रिस्तान को भी सरकार अब अपनी संपत्ति बना सकती है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश बी० आर० गवई ने सवाल किया कि यदि जमीन इतनी पुरानी है तो उसका राजिष्ट्रेशन क्यो नही कराया गया।
इस पर कपिल सिब्बल ने जबाब में कहा
'कि पंजीकरण राज्य की जिम्मेदारी थी जिसें पूरा नहीं किया गया। अब यह कहना कि समुदाय ने पंजीकरण नहीं कराया और इसलिए उनकी गलती है हो यह तर्क संगत नही है उन्होंने आगे कहा कि यदि आप के पास शक्ति है तो आप अपनी ही गलती का लाभ नहीं उठा सकते।
अन्य याचिकाकर्ताओं की और से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंवी, हुजैफ़ा अहमदी, सी० यू० सिंह और राजीव धवन ने कहा वक्फ बाँय यूजर की परम्परा को हटाना ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों के अस्तित्व को खतरे में डाल देगा।
नया कानून मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारो और अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन जैसा है। वक्फ बोर्ड की संरचना में गैर मुस्लिमों को शामिल करता अनुचित है वही बुधवार को केन्द्र सरकार की ओर से सॉललेसिटर जनरल दुषार मेहता ने कोर्ट को बताया था कि वक्फ इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नही है वक्फ बोर्ड धार्मिक नही बल्कि सेकुलर काम करता है। इसलिए उसमें गैर मुस्लिमों की भागीदारी पर रोक नहीं हो सकती।
यस० जी० मेहता ने आगे तर्क दिया कि "वक्फ बाय यूजर का कांसेप्ट कानून के जरिए दिया गया अधिकार था ना की मूल अधिकार इससे सरकारी और निजी जमीनों पर अनुचित दावे रहे थे। 2013 के बाद वक्फ सम्पत्तिओ में 116% की बढ़ोतरी देखी गयी जो दुरुप्रयोग का संकेत हैं।
एस०जी० मेहता ने यह भी कहा कि वक्फ स्थापित करने के लिए 5 साल के मुस्लिम अभ्यास की शर्त इसलिए है कि धोखाधड़ी ना हो। उन्होंने बताया कि जनजातीय संगठनों की ओर से शिकायते है कि बोर्ड के नाम पर उनकी जमीने छीनी जा रहीं है और शरिया कानून में भी मुस्लिम पहचान जरूरी है इसी आधार पर यह शर्त लगाई गयी है।
वही वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायणन ने दलील दी “ अगर याचिका कर्ता ये कहते है कि वक्फ इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा है तो यह सवाल 9 जजों की संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। इन सभी दलीलो को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित किया।
अब सवाल बड़ा है कि क्या वक्फ संशोधन कानून मुस्लिम समुदाय के लोगो के अधिकारो का हनन करता है या यह सरकारी संपत्ति की रक्षा के लिए जरूरी सुधार है
कोर्ट ने इस पर क्या निर्णय लिया है यह जल्द ही पता चलेगा।
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