Bharatiya Nagarik Suraksha Sahitya section 231 and 233

जब अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तब मामला उसे सपर्व करना
232. जब अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तब मामला उसे सपर्व करना-जब पुलिस रिपोर्ट पर या अन्यथा संस्थित किसी मामले में अभियुक्त मजिस्टेट के समक्ष हाजिर है या लाया जाता है और मजिस्टेट को यह प्रतीत होता है कि अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह-- (क) धारा 230 या धारा 231 के उपबंधों का अनुपालन करने के पश्चात् मामला सेशन न्यायालय को सुपुर्द करेगा और जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए अभियुक्त व्यक्ति को अभिरक्षा में तब तक के लिए प्रतिप्रेषित करेगा जब तक ऐसी सुपुर्दगी नहीं कर दी जाती है; (ख) जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए विचारण के दौरान और समाप्त होने तक अभियुक्त को अभिरक्षा में प्रतिप्रेषित करेगा; (ग) मामले का अभिलेख तथा दस्तावेजें और वस्तुएं, यदि कोई हों, जिन्हें साक्ष्य में पेश किया जाना है, उस न्यायालय को भेजेगा; (घ) मामले के सेशन न्यायालय को सुपुर्द किए जाने की लोक अभियोजक को सूचना देगाः परन्तु इस धारा के अधीन प्रक्रियाएं संज्ञान लेने की तारीख से नब्बे दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जाएंगी और मजिस्ट्रेट द्वारा कारणों को अभिलिखित करते हुए ऐसी अवधि के लिए विस्तारित की जा सकेगी जो एक सौ अस्सी दिनों की अवधि से अधिक न होः परन्तु यह और कि जहां कोई आवेदन सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय किसी मामले में अभियुक्त या पीड़ित या ऐसे व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत किए गए किसी व्यक्ति द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दाखिल किया गया है तो मामले को सुपुर्द करने के लिए सेशन न्यायालय को भेजा जाएगा। 233. परिवाद वाले मामले में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया और उसी अपराध के बारे में पुलिस अन्वेषण (1) जब पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित किसी मामले में (जिसे इसमें इसके पश्चात् परिवाद वाला मामला कहा गया है) मजिस्ट्रेट द्वारा की जाने वाली जांच या विचारण के दौरान उसके समक्ष यह प्रकट किया जाता है कि उस अपराध के बारे में जो उसके द्वारा की जाने वाली जांच या विचारण का विषय है पुलिस द्वारा अन्वेषण हो रहा है, तब मजिस्ट्रेट ऐसी जांच या विचारण की कार्यवाहियों को रोक देगा और अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी से उस मामले की रिपोर्ट मांगेगा।
(2) यदि अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 193 के अधीन रिपोर्ट की जाती है और ऐसी रिपोर्ट पर मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध किसी अपराध का संज्ञान किया जाता है जो परिवाद वाले मामले में अभियुक्त है तो, मजिस्ट्रेट परिवाद वाले मामले की और पुलिस रिपोर्ट से पैदा होने वाले मामले की जांच या विचारण साथ-साथ ऐसे करेगा मानों दोनों मामले पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किए गए (3 यदि पुलिस रिपोर्ट परिवाद वाले मामले में किसी अभियुक्त से संबंधित नहीं है या यदि मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट पर किसी अपराध का संज्ञान नहीं करता है तो वह उस जांच या विचारण में जो उसके द्वारा रोक ली गई थी, इस संहिता के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा।

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