Commencement of proceedings before Magistrate
मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही का प्रारम्भ किया जाना
227. आदेशिका का जारी किया जाना (1) यदि किसी अपराध का संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट
की राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार हैं और-
(क) मामला समन-मामला प्रतीत होता है तो वह उसकी हाजिरी के लिए अभियुक्त को समन जारी करेगा; या
(ख) मामला वारंट-मामला प्रतीत होता है, तो वह अपने या (यदि उसकी अपनी अधिकारिता नहीं है तो) अधिकारिता वाले किसी अन्य मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त के निश्चित समय पर लाए जाने या हाजिर होने के लिए वारण्ट या यदि वह ठीक समझता है समन, जारी कर सकता है:
परन्तु समन या वारंट, इलैक्ट्रानिकी साधनों के माध्यम से भी जारी किए जा सकेगे।
(2) अभियुक्त के विरुद्ध उपधारा (1) के अधीन तब तक कोई समन या वारण्ट जारी नहीं किया जाएगा, जब तक अभियोजन के साक्षियों की सूची फाइल नहीं कर दी जाती है।
(3) लिखित परिवाद पर संस्थित कार्यवाही में उपधारा (1) के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन वारण्ट के साथ उस परिवाद की एक प्रतिलिपि होगी।
(4) जब तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन कोई आदेशिका फीस या अन्य फीस संदेय है, तब कोई आदेशिका तब तक जारी नहीं की जाएगी जब तक फीस नहीं दे दी जाती है और यदि ऐसी फीस उचित समय के अन्दर नहीं दी जाती है तो मजिस्ट्रेट परिवाद को खारिज कर सकता है।
(5) इस धारा की कोई बात धारा 90 के उपबंधों पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी।
228. मजिस्ट्रेट का अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति दे सकना (1) जब कभी कोई मजिस्ट्रेट समन जारी करता है तब यदि उसे ऐसा करने का कारण प्रतीत होता है तो वह अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्त कर सकता है और अपने अधिवक्ता द्वारा हाजिर होने की अनुज्ञा दे सकता है।
(2) किन्तु मामले की जांच या विचारण करने वाला मजिस्ट्रेट, स्वविवेकानुसार, कार्यवाही के किसी प्रक्रम में अभियुक्त की वैयक्तिक हाजिरी का निदेश दे सकता है और यदि आवश्यक हो तो उसे इस प्रकार हाजिर होने के लिए इसमें इसके पूर्व उपबन्धित रीति से विवश कर सकता है।
229. छोटे अपराधों के मामले में विशेष समन (1) यदि किसी छोटे अपराध का संज्ञान करने
वाले मजिस्ट्रेट की राय में मामले को धारा 283 या धारा 284 के अधीन संक्षेपतः निपटाया जा सकता है तो वह मजिस्ट्रेट, उस दशा के सिवाय, जहां उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, उसकी प्रतिकूल राय है. अभियुक्त से यह अपेक्षा करते हुए उसके लिए समन जारी करेगा कि वह विनिर्दिष्ट तारीख को मजिस्ट्रेट के समक्ष या तो स्वयं या अधिवक्ता द्वारा हाजिर हो या यदि वह मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर हुए बिना आरोप का दोषी होने का अभिवचन करना चाहता है तो लिखित रूप में उक्त अभिवाक् और समन में विनिर्दिष्ट जुर्माने की रकम डाक या संदेशवाहक द्वारा विनिर्दिष्ट तारीख से पूर्व भेज दे या यदि वह अधिवक्ता द्वारा हाजिर होना चाहता है तो ऐसे अधिवक्ता द्वारा उस आरोप का दोषी होने का अभिवचन करना चाहता है तो अधिवक्ता को अपनी ओर से आरोप के दोषी होने का अभिवचन करने के लिए लिखकर प्राधिकृत करे और ऐसे अधिवक्ता की मार्फत जुर्माने का संदाय करेः
परन्तु ऐसे समन में विनिर्दिष्ट जुर्माने की रकम पांच हजार रुपये से अधिक न होगी।
(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए "छोटे अपराध" से कोई ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो केवल पांच हजार रुपए से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय है किन्तु इसके अन्तर्गत कोई ऐसा अपराध नहीं हैं जो मीटर यान अधिनियम, 1988 (1988 का 59) के अधीन या किसी अन्य ऐसी विधि के अधीन, जिसमें दोषी होने के अभिभावक पर अभियुक्त की अनुपस्थिति में उसको दोषसिद्ध करने के लिए उपबंध है, इस प्रकार दण्डनीय है।
(3) राज्य सरकार, किसी मजिस्ट्रेट को उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग किसी ऐसे अपराध के संबंध में करने के लिए, जो धारा 359 के अधीन शमनीय है, या जो कारावास से. जिसकी अवधि तीन मास से अधिक नहीं है या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय है, अधिसूचना द्वारा विशेष रूप से वहा सशक्त कर सकती है. जहां मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए मजिस्ट्रेट की राय है कि केवल जुर्माना अधिरोषित करने से न्याय के उद्देश्य पूरे हो जाएंगे।
230. अभियुक्त को पुलिस रिपोर्ट या अन्य वस्तावेजों की प्रतिलिपि देना-किसी ऐसे मामले में जहां कार्यवाही पुलिस रिपोर्ट के आधार पर संस्थित की गई है. वहां मजिस्ट्रेट बिना किसी देरी के और मामले में अभियुक्त को उपस्थित करने या उसके उपस्थित होने की तारीख से जो चौदह दिनों की अवधि में अधिक न हो. निम्नलिखित में से प्रत्येक की एक प्रतिलिपि अभियुक्त और पीडित को (यदि उसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता द्वारा किया गया हो) अविलम्ब निःशुल्क देगा:-
(i) पुलिस रिपोर्ट;
(ii) धारा 173 के अधीन लेखबद्ध की गई प्रथम इत्तिला रिपोर्ट;
iii) धारा 180 की उपधारा (3) के अधीन अभिलिखित उन सभी व्यक्तियों के कथन, जिनकी अपने साक्षियों के रूप में परीक्षा करने का अभियोजन का विचार है, उनमें से किसी ऐसे भाग को छोड़कर जिनको ऐसे छोड़ने के लिए निवेदन धारा 193 की उपधारा (7) के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा किया गया है;
(iv) धारा 183 के अधीन लेखबद्ध की गई संस्वीकृतियां या कथन, यदि कोई हो;
(v) कोई अन्य दस्तावेज या उसका सुसंगत उद्धरण, जो धारा 193 की उपधारा (6) के अधीन पुलिस रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट को भेजी गई है:
परन्तु मजिस्ट्रेट खण्ड (iii) में निर्दिष्ट कथन के किसी ऐसे भाग का परिशीलन करने और ऐसे निवेदन के लिए पुलिस अधिकारी द्वारा दिए गए कारणों पर विचार करने के पश्चात् यह निदेश दे सकता है कि कथन के उस भाग की या उसके ऐसे प्रभाग की, जैसा मजिस्ट्रेट ठीक समझे, एक प्रतिलिपि अभियुक्त को दी जाए:
परन्तु यह और कि यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि कोई दस्तावेज विशालकाय है तो वह अभियुक्त और पीड़ित (यदि उसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता द्वारा किया गया है) को उसकी प्रतिलिपि देने के बजाय इलैक्ट्रानिक साधन के माध्यम से प्रति को दिया जा सकेगा या यह निदेश देगा कि उसे स्वयं या अधिवक्ता द्वारा न्यायालय में उसका निरीक्षण ही करने दिया जाएगाः
परन्तु यह भी कि इलैक्ट्रानिक प्ररूप में उन दस्तावेजों को प्रदाय करने के लिए विचार किया जाएगा जो सम्यक् रूप से प्रस्तुत किए गए हैं।
231. सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय अन्य मामलों में अभियुक्त को कथनों और दस्तावेजों की प्रतिलिपियां देना-जहां पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित किसी मामले में, धारा 227 के अधीन आदेशिका जारी करने वाले मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है, वहां मजिस्ट्रेट निम्नलिखित में से प्रत्येक की एक प्रतिलिपि अभियुक्त को तत्काल निःशुल्क देगा-
(i) उन सभी व्यक्तियों के, जिनकी मजिस्ट्रेट द्वारा परीक्षा की जा चुकी है, धारा 223 या धारा 225 के अधीन लेखबद्ध किए गए कथन;
(ii) धारा 180 या धारा 183 के अधीन लेखबद्ध किए गए कथन, और संस्वीकृतियां, यदि कोई हो;
(iii) मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश की गई कोई दस्तावेजें, जिन पर निर्भर रहने का अभियोजन का विचार है:
की उसकी प्रतिलिपि देने की बजाय यह निदेश देगा कि उसे स्वयं या अधिवक्ता द्वारा न्यायालय में उसका परन्तु यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी कोई दस्तावेज विशालकाय है, तो वह अभियुक्त निरीक्षण करने दिया जाएगाः
परंतु यह भी की इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में उन दस्तावेजों को प्रदाय करने के लिए विचार किया जायेग जो सम्यक रूप से प्रस्तुत किए गए हैं।
Nice 👍
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